जब इलाज ही बीमारी बन जाए

जब इलाज ही बीमारी बन जाए

चिकित्सा क्षेत्र में हुए नई प्रगति ने जरूरतमंद मरीजों को एक नया जीवन दिया है, मगर इनमें से कई चीजें स्वास्थ्य सेवा जनित समस्याओं को भी पैदा करती हैं, जैसे संक्रमण आदि। एचएआई ऐसे संक्रमण होते हैं जो मरीज को अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के उपचार के क्रम में लग सकते हैं। ये संक्रमण बैक्टीरिया, वायरस, फंगस किसी भी चीज से हो सकते हैं। चिकित्सा या सर्जरी के द्वारा उपचार के दौरान विकसित हुए ऐसे संक्रमण मरीज की बीमारी को और लंबा खींच सकते हैं या मृत्यु तक की वजह बन सकते हैं।

व्यापक असर

कई अध्ययनों से पता चलता है कि अस्पताल में भर्ती 25 में से 1 मरीज एचएआई से संक्रमित होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो सालाना इन संक्रमणों से 80,000 लोगों की मौत हो जाती है।

रिस्क फैक्टर

मरीज की सुरक्षा के लिए एचएआई से बचाव बहुत अहम है। कोई भी मरीज एचएआई के जोखिम पर हो सकता है मगर कुछ खास चीजें संक्रमण के खतरे को और बढ़ा देती हैं। जैसे मरीज की उम्र, इम्यून सिस्टम पर असर डालने वाली पहले से मौजूद कोई बीमारी, कैथेटर या सांस की नली जैसे उपकरणों का प्रयोग, इंजेक्शन, सर्जरी से पैदा होने वाली जटिलताएं और एंटीबायोटिक का इस्तेमाल। अस्पताल, नर्सिंग होम आदि में भर्ती मरीज भी एचएआई के अधिक जोखिम पर होते हैं क्योंकि मरीजों और स्वास्थ्य कर्मियों के बीच संक्रामक रोगों का आदान-प्रदान हो सकता है। एंटीबायोटिक्स का अधिक या गलत इस्तेमाल भी इस समस्या को बढ़ाता है।

एंटीबायोटिक का अंधाधुंध इस्तेमाल – एंटीबायोटिक के अंधाधुंध और बिना डॉक्टरी सलाह के इस्तेमाल करने पर शरीर में उन दवाओं के प्रति रेसिस्टेंस विकसित हो जाता है। अस्पताल हर तरह के जीवाणुओं का गढ़ होता है। कई बार ये मरीजों को संक्रमित कर देते हैं, जैसे हृदय की सर्जरी से रिकवर हो रहा व्यक्ति वेंटिलेटर में मौजूद बग से निमोनिया का शिकार हो सकता है। ऐसे अस्पताल जनित संक्रमण हर साल लाखों लोगों को चपेट में ले लेते हैं।

एचएआई के प्रकार

- कैथेटर से होने वाले मूत्र नली संक्रमण

-रक्त संक्रमण

- सर्जरी की जगह पर संक्रमण

- वेंटिलेटर से होने वाली समस्याएं

-निमोनिया

रोकथाम

· अगर डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्य कर्मी नए मरीज को छूने से पहले सिर्फ हाथ धो लें तो अस्पताल जनित संक्रमण को 20 फीसदी तक कम किया जा सकता है। अक्सर काम के दबाव और सुविधाओं की कमी के कारण अधिकांश डॉक्टर इस बुनियादी नियम का पालन नहीं करते।

· मेडिकल और नर्सिंग स्टाफ को इससे बचाव संबंधी प्रशिक्षण प्रदान करना जरूरी है।

· अस्पतालों द्वारा यूनिवर्सल सेफ्टी प्रोजीजर को अपनाया जाना चाहिए और हैंड वाशिंग प्रक्रिया को समझना और समझानाए चाहिए।

-अस्पताल परिसर और मरीजों के आस-पास भीड़ को नियंत्रित रखना चाहिए।

· अस्पताल में इंफेक्शन कंट्रोल टीम का गठन जिसमें एक माइक्रोबायोलॉजिस्ट, इंफेक्शन कंट्रोल नर्स, प्रबंधन का कोई सदस्य और एक डॉक्टर शामिल होना चाहिए।

· एंटीबायोटिक पॉलिसी तैयार करना और इंफेक्शन के स्रोत व कारणों का पता लगाना

·एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक प्रयोग पर लगाम लगाना।

अस्पताल जनित संक्रमण पर काबू न किए जाने पर यह अतिरिक्त बीमारियां तो पैदा करता ही है, साथ ही मरीजों का आर्थिक बोझ भी बढ़ा देता है। उन्हें अनावश्यक रूप से अस्पताल में अधिक समय बिताना होगा। इसलिए, स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में इस विषय पर ध्यान देना बहुत जरूरी हो जाता है।

Disclaimer: sehatraag.com पर दी गई हर जानकारी सिर्फ पाठकों के ज्ञानवर्धन के लिए है। किसी भी बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या के इलाज के लिए कृपया अपने डॉक्टर की सलाह पर ही भरोसा करें। sehatraag.com पर प्रकाशित किसी आलेख के अाधार पर अपना इलाज खुद करने पर किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति की ही होगी।